मेरे अश्कों की खता क्या है,
जुदा होके भी ये तेरा मुझसे जुड़ा क्या है?
तलब ये आज फिर उठी कैसी है
मेरे सूखे अश्कों में ये तेरी याद छुपी कैसी है ।
शायद गुजरा हूँ मैं आज, उन गलियों से फिर तेरी
उन पूरानी गलियों में आज भी तेरी याद बसी कैसे है ।
अब तक,
अब तक याद करता है नासमझ दिल ये मेरा बस यही
तेरा वो बरसों पुराना मिलने का वादा,
किया था जो तूने,
मोहल्ले के चौराहे पे कभी
वो वादा आज भी अधुरा क्यूं है,
वो चौराहा आज भी सुना क्यूं है ।
खुदा कसम, सौ गम सह लूँ मैं तेरे वास्ते,
पर तेरे जाने का गम इतना बड़ा क्यूं है,
इतना बड़ा क्यूं है ।