Monday, August 27

'अक्स' उनका समझ के ख्वाब पैमाने से भूलना है
उफ़ होगा कैसे ये ! मुझको तो मुझसे ही भूलना है ||

'शशांक'
सुर्ख गुलाबी हो जाते हैं अक्सर धूप में उसके गाल
शायद सूरज भी होता मस्ताना देख उसकी चाल
अब तो मौला रहमत कर, दे मुझको पी का साथ
बनूँ मैं छतरी उसका हरदम रखने शीतल छांव ||



'शशांक'
प्रभु क्यूँ इस जग के किस्से करते मुझे अधीर
बन जोगी बस रमता फिरूं भर नैनों में नीर
'प्रीती' माला मैं जपूँ, इस सा न दूजा तीर्थ
बैकुंठ, कैलाश इस जग में मेरे, जो बनूँ मैं उसका मीत ||

'शशांक'

Thursday, August 23

ऐ खुदा कर इतनी बरकत मेरे 'गीत' पे
रहे खुशबू बन साँसों में हरदम मेरे 'मीत' के
 नज़रें इनायत सदा तेरी मेरे 'प्रीत' पे
जो पाऊँ मैं 'प्रीति' और तू खुश हो मेरी 'जीत' पे |

'शशांक'
'कशिश' की कशिश ने जगा दी कशिश
मेरे दिल में 'कशिश' के लिए |

'शशांक'
दुनिया में आए थे करने दीदार-ए-जिंदगी,
कमबख्त मौत से इकरार कर बैठे
सोचा था अभी बरस कई हैं जीने को,
जीवन में कुछ करने को
जब उठी अर्थी तो समझा,
पल अभी और चाहिए थे कुछ कर गुजरने को ।।

सन्दर्भ: नादानों संभल जाओ, अभी भी वक़्त है ।
दुनिया में आए थे करने दीदार-ए-जिंदगी,
कमबख्त मौत से इकरार कर बैठे
सोचा था अभी बरस कई हैं जीने को,
जीवन में कुछ करने को
जब उठी अर्थी तो समझा,
पल अभी और चाहिए थे कुछ कर गुजरने को ।।

सन्दर्भ: नादानों संभल जाओ, अभी भी वक़्त है ।
है मुकम्मल यकीन मौला तेरी इस बात पे
कि मोहब्बत तो वो ही सजदा है
अब चाहे करूँ इसे मैं
'प्रीति' कि राह पे या तेरी दरगाह पे |

'शशांक'
मेरे घर के सामने एक हरा-भरा मैदान,
पेड़ जिसमें अनेकों बरगद, शीशम, सागवान,
उनपर आया रहने झुण्ड परिंदों का इसबार
अद्भुत, अनुपम, मनोरम दृश्य पूर्ण सजीव साकार |

उड़ते, चहचहाते, झुण्ड में कलरव करते
और आंगन में कभी गेहूं के दाने चखते
परिंदे देख-देख जिन्हें मैं हर्षित परेशान |

हर्ष, कि कितनी मनभावन दुनिया इनकी,

परेशान, क्यूंकि नहीं समझता इनकी बोली इंसान
जो देती हरवक्त भाईचारे और उन्मुक्त जीवन का पैगाम
और जो कानों में चुपके से कहती,
कि चाहे कहो उसे 'शशांक' या 'रहमान'
सबसे पहले वो है 'इंसान' ||

'शशांक'

Tharoor in a pseudo intellectual role till 2019

Mr Tharoor is a learned person...represented India in the UN ...lost the race to be its secretary general not because he was less competen...