Wednesday, December 26

!SOME RANDOM THOUGHTS!



You live life every day. You go to work, come back and have the same routine for the next 365 days of a year. Where on earth do you have time to sit and contemplate!

Writing too has a similar pattern. You write once, you write again and as time flies, you go on filling the papers with same emotions, though words might change.

However, life also throws surprises. It tests you. It wants to know your response. You might argue, “Why surprises! I was happy with my normal life” or you might enjoy it taking it as something to look forward to.

Life, like all geniuses after all, has its own way of doing things and the beauty of life has parallels only in artistic impressions of mankind; writing being one of them.

Thinking about surprises for a writer, they are events and situations where he can’t use his routine, cliched patterns of words; where he has to rediscover his pure, virgin, sacrosanct feelings or else he’ll be a thing of the past.

Using the same corollary as above, I could say that till only a few days ago, it was business as usual for me. I was not writing!

But, as they say no one can stop an idea whose time has come and time has indeed come for an idea which says, “Respect a woman even if she is a whore.” This idea is simply profound. ‘Easy to preach, hard to own; a jugglery of a few words yet the essence of a future utopian universe.’ It also asks not to customize a woman into someone’s wife, daughter or sister while defending her. This should never be a necessity for the justified action.

A woman deserves to be respected because she is a woman. Nothing else!

Think over, ponder & introspect. Once, understood, inculcate. The world will surely be a better place.
will surely be a better place.  

Friday, October 5

मोहब्बत का भी यारों
क्या खूब फ़साना होता है
दो जिंदगानी तबाह करने में
 मशगूल पूरा जमाना होता है |

'शशांक'
कभी कभी इस दिल को
सच भी दिखलाना पड़ता है
ये आशिक बन 'इश्क' गलियों में फिरता है
इसे 'अंजाम-ए-वफ़ा' की तल्ख़ मंजिल
'बेवफाई' से मिलाना पड़ता है |

'शशांक'

Thursday, October 4

इतने भी गैर हम नहीं थे
जो ऐसे आपने भुला दिया
'ना' ही कह देते उस वक़्त,
क्यूँ इतनी उम्मीदें जगा
आपने उन्हें झुठला दिया |

'शशांक'
गर खुदा तू हुस्न का कद्रदान होता,
मेरे रकीबों में पहला तेरा ही नाम होता
और गर मोहब्बत तेरा इमान होता
तू मुझसा ही खुशकिस्मत इंसान होता |

'शशांक'

Tuesday, October 2

कभी तनहाइयाँ होती थीं शौकों में बिताने के लिए 
अब आदत है 'शौकों' की तनहाइयों भुलाने के लिए 
है मुजरिम वक़्त और गवाह भी बदलती इन फिजाओं का  
कि खुश होते थे कभी जो मिलके हमसे बेइन्तेहाँ  
वो ही लाख बहाने ढूँढते हैं 
अब हमसे नज़रे चुराने के लिए |

'शशांक'

Tuesday, September 25

मैंने सोचा है
तुझे लम्हों में
हर पल, हर सुबह, हर शाम |

तुझे देखा है
ख्वाबों में
भोली, चंचल, कोमल सी
जैसे पहली बार मिली थी मुझसे
तू अजनबी, जुदा, बिलकुल अनजान |

मैं सोचता हूँ
आज भी
शिद्दत से तुझे
जैसे गहराइयों से मेरे दिल की
सिर्फ उठे है तेरा नाम |

मैं जानता हूँ
ये जो दूर से दिखते हैं
दो किनारों के मंजर,
धरती और अम्बर
नहीं मिलते हैं जीवनभर |

फिर भी चाहता हूँ
तुझे मैं
बेझिझक बेइनतहां
मोहब्बत की गुलपोश धरती पे
मिटाके अपना नामोनिशान |

'शशांक'

Sunday, September 23

एक नज़र की तमन्ना में सदियों बिताये चला हूँ,
मैं बेपरवाह 'इश्क' से मुकद्दर जलाये चला हूँ |
सूखी स्याही उसमें अहसासों की कब से
मैं फिर भी कतरों की आस लगाये चला हूँ |

'शशांक'
ऐसे ही हम भला क्या
बूंदों की किस्मत से जल जाते हैं
कि जब छूती है बारिश उनको
माशा'अल्लाह वो और निखर आते हैं |

'शशांक'

Friday, September 14

क्या बोलूं 'खुदा' उनसे ?
या कह डालूं मैं 'जान'
जो पूछे दुनिया मुझसे
है क्या तेरी महबूबा का नाम !

'शशांक'

Tuesday, September 11

चले हैं खून से लिखने इतिहास के पन्ने
जवां मोहब्बत का वैसे भी सुर्ख इतिहास हुआ है |

'शशांक'
इजहार भी नहीं, इनकार भी नहीं
बस उलझन में रहती हो
कहीं ऐसा तो नहीं तुम
अब भी रुसवाइओं से डरती हो |

'शशांक'
वो इजहार भी बड़े तकल्लुफ से करते हैं
हाय! उनकी इसी अदा पे तो हम मरते हैं |

'शशांक'
वो जरा जरा सा उनका देखना बहाने से
कहीं क़यामत न ला दे ज़माने पे ||

'शशांक'
नामुमकिन अगर वफ़ा हो तो बेवफाई भी कबूल है
तेरी मोहब्बत में दोजख की चारपाई भी कबूल है !

'शशांक'

Monday, September 10

'देश बदलेंगे'

'देश बदलेंगे'
है प्रचलन में काफी ये नारा
सबके करीब, सबको प्यारा
जैसे हो देश बदलना धर्म हमारा !

देख आन्दोलन करते लोगों को
खुश बहुत भारत माता
पर सवाल है अब भी उसका
फर्क नहीं जिनपर अनपढ़, गरीब, बेचारों का
क्या असर पड़ेगा उनपर नए-नए प्रावधानों का !


देश जो बनता है लोगों के मिलने से
वो कैसे बदलेगा केवल कानूनों के सविंधान में जुटने से
है दम तो बोलो 'हम बदलेंगे'
फिर देखो कैसे नहीं बदलता ये देश हमारा !
उठती है तमन्ना जब दिल में दीदार की
बोतल भी दिखाती उस दिन तस्वीर मेरे यार की ||

'शशांक'

Tuesday, September 4

चाहे रफीक या चाहे रकीब
दुआ उनके अब दिल से निकले जो भी
हो खुदा बस वही मुझको अज़ीज़,
हो वही बस मेरा नसीब |

'शशांक'
तबस्सुम को तस्सवुर में ही रहने दो
दुनिया देख कहीं ये भी बेगाना न बन जाये !

'शशांक'

Monday, September 3

अर्ज दिल से न हो तो इबादत कैसी
चर्चे जिसके न हो वो मोहब्बत कैसी |

'शशांक'
तसव्वुर में उनके अब ढलती हर शाम
लेके ओठों पे कभी जाम, कभी उनका नाम |

'शशांक'
शरारे आँखों में, अदाएं बातों में
थी शोखियाँ चलने में, नजाकत भी संभलने में
अब तो उफ़ याद ही नहीं
थे सबब कितने मेरे बहकने में |

'शशांक'
जन्नत खुश जितनी पाकर उसको शायद उतनी जमीं भी नहीं
बेशुबह मेरी मोहब्बत में थी शिद्दत की पूरी कमी |
'याद'

ढलता सूरज,चढ़ती रात
हर सपने में हमसफ़र 'याद'
कितना छोडो, कितना कोसो
'याद' फिर भी हमदम, हमराज़ |

मरना हो या फिर जीना
गम हो या ख़ुशी का महीना
हर पल जो रहे साथ-साथ
वो 'याद', वो 'याद' |

'याद' जरूर है बात बड़ी खास
तभी तो रखे हर कोई संजो के याद !

'शशांक'

Sunday, September 2

ना 'अदब' की तुलना 'हिजाब' से
न मेरे महबूब की महताब से |

'शशांक'
जैसे 'शब' का मुकद्दर हर रोज 'सहर'
मुझ पर भी कुछ ऐसा करे उनकी 'नज़र' |

'शशांक'
सितम ढाने के उनके भी हैं तरीके अजीब,
जो ना मिलो तो भेज देते हैं अपनी तस्वीर |

'शशांक'
भूल हमसे आज फिर बड़ी हुई है
खुदा की बंदगी उनसे पहले हो गयी है |

'शशांक'

Monday, August 27

'अक्स' उनका समझ के ख्वाब पैमाने से भूलना है
उफ़ होगा कैसे ये ! मुझको तो मुझसे ही भूलना है ||

'शशांक'
सुर्ख गुलाबी हो जाते हैं अक्सर धूप में उसके गाल
शायद सूरज भी होता मस्ताना देख उसकी चाल
अब तो मौला रहमत कर, दे मुझको पी का साथ
बनूँ मैं छतरी उसका हरदम रखने शीतल छांव ||



'शशांक'
प्रभु क्यूँ इस जग के किस्से करते मुझे अधीर
बन जोगी बस रमता फिरूं भर नैनों में नीर
'प्रीती' माला मैं जपूँ, इस सा न दूजा तीर्थ
बैकुंठ, कैलाश इस जग में मेरे, जो बनूँ मैं उसका मीत ||

'शशांक'

Thursday, August 23

ऐ खुदा कर इतनी बरकत मेरे 'गीत' पे
रहे खुशबू बन साँसों में हरदम मेरे 'मीत' के
 नज़रें इनायत सदा तेरी मेरे 'प्रीत' पे
जो पाऊँ मैं 'प्रीति' और तू खुश हो मेरी 'जीत' पे |

'शशांक'
'कशिश' की कशिश ने जगा दी कशिश
मेरे दिल में 'कशिश' के लिए |

'शशांक'
दुनिया में आए थे करने दीदार-ए-जिंदगी,
कमबख्त मौत से इकरार कर बैठे
सोचा था अभी बरस कई हैं जीने को,
जीवन में कुछ करने को
जब उठी अर्थी तो समझा,
पल अभी और चाहिए थे कुछ कर गुजरने को ।।

सन्दर्भ: नादानों संभल जाओ, अभी भी वक़्त है ।
दुनिया में आए थे करने दीदार-ए-जिंदगी,
कमबख्त मौत से इकरार कर बैठे
सोचा था अभी बरस कई हैं जीने को,
जीवन में कुछ करने को
जब उठी अर्थी तो समझा,
पल अभी और चाहिए थे कुछ कर गुजरने को ।।

सन्दर्भ: नादानों संभल जाओ, अभी भी वक़्त है ।
है मुकम्मल यकीन मौला तेरी इस बात पे
कि मोहब्बत तो वो ही सजदा है
अब चाहे करूँ इसे मैं
'प्रीति' कि राह पे या तेरी दरगाह पे |

'शशांक'
मेरे घर के सामने एक हरा-भरा मैदान,
पेड़ जिसमें अनेकों बरगद, शीशम, सागवान,
उनपर आया रहने झुण्ड परिंदों का इसबार
अद्भुत, अनुपम, मनोरम दृश्य पूर्ण सजीव साकार |

उड़ते, चहचहाते, झुण्ड में कलरव करते
और आंगन में कभी गेहूं के दाने चखते
परिंदे देख-देख जिन्हें मैं हर्षित परेशान |

हर्ष, कि कितनी मनभावन दुनिया इनकी,

परेशान, क्यूंकि नहीं समझता इनकी बोली इंसान
जो देती हरवक्त भाईचारे और उन्मुक्त जीवन का पैगाम
और जो कानों में चुपके से कहती,
कि चाहे कहो उसे 'शशांक' या 'रहमान'
सबसे पहले वो है 'इंसान' ||

'शशांक'

Tuesday, June 12

 

1.

मैं चुप हरदम हमेशा,
किसे सुनाता अपनी व्यथा,
डर के बादल, शोषण का कुहरा
बचपन मेरा था ऐसे गुजरा ।

अपना था वो पूरा अपना,
है अबतक इस बात का रोना
कहता मुझको अपना खिलौना,
पर खेल-खेल में उजाड़ दिया मेरा बचपन सलोना ।।


2.

बाल-मन मेरा घबराया सहमा सा
दर्द के साये में हरवक्त डूबा सा
शीशों सी चुभती उसके आने की आहटें
और आहटों में कैद तड़प मेरे मन की 
उस तड़प का है आजीवन दीदार किया
दर्द में मैंने दर्द से हरदम इकरार किया ।। 



सन्दर्भ: ये दो कवितायेँ बाल-शोषण जैसे गंभीर मुद्दे पर कुछ कहना चाहती हैं। अगर यें लोगों को इस समस्या के बारे में थोडा भी सोचने पर मजबूर कर पायीं तो मेरा प्रयास सफल होगा ।

Tuesday, June 5

'स्त्री'

स्त्री  कहलाती दुनिया में  त्याग  की मूर्ति,
अफ़सोस किसी  ने न सोचा,  क्या है इनकी सामाजिक स्थिति
कभी माँ तो कभी बेटी, कभी बहन तो कभी बीवी
 बन अनगिनत फर्जों को अदा ये करतीं  ।
 
पुरुषों की भावहीन दुनिया में करुणामयी प्रेम-रस  घोलती,
अनन्त अत्याचारों के बावजूद उफ़ तक न करती
कभी पति तो कभी पुत्र  सेवा में अपना सर्वेस्व उड़ेलती स्त्री ,
नि:स्वार्थ त्याग को जीवन धर्म मानती ।

क्यों निष्ठुर समाज न कभी समझ पाया  इनकी वृति
कि है अधिकार समान इनका भी, उतना ही  ही प्रेम नियति
'जगवालों संभल जाओ'  है  देती चेतावनी ये धरती
वरना विमुख रहोगे जीवनभर, न होगी होगी कभी तुम्हारे प्रेमाकांक्षाओं की पूर्ति ।।

 'शशांक'

सन्दर्भ: यह कविता 'सत्यमेव-जयते' नामक धारावाहिक से प्रेरित होकर लिखी गयी है । आज समाज को जरुरत है कि यह अपनी सोच का दायरा विस्तृत करे तथा स्त्रियों के प्रति उदारवादी नज़रिया अपनाए  ।

Sunday, May 6

मेरे कदम शबाब-ऐ- दहलीज़ पे,
तेरे हुस्न की क़यामत से बहक जाते हैं ।
जोर चलता नहीं इन बेताब हसरतों पे,
तेरी  शोख अदाओं पे जो ये फिसल जाते हैं।
दिलों के दर्द जुबान से यूँ बयां नहीं करते, 
कुछ बेवफा क्यूंकि इस बात से भी खफा हो जाते हैं ।

Sunday, March 25

वो बचपन की मुलाकात आज भी है याद, 
वो छुट्टियों के बाद का साथ आज भी है याद,
जुदा हुए हम तो क्या हुआ ऐ वक़्त,
वो चाँद सा रुखसार आज भी है याद ।। 
मेरी नज्मों से मेरे जख्मों का एहसास न कर,
शब्द ख़त्म हो जायेंगे पर दर्द रह जायेगा ।

Sunday, February 26

तेरा गम


मेरे अश्कों की खता क्या है,
जुदा होके भी ये तेरा मुझसे जुड़ा क्या है?
तलब ये आज फिर उठी कैसी है
मेरे सूखे अश्कों में ये तेरी याद छुपी कैसी है

शायद गुजरा हूँ मैं आज, उन गलियों से फिर तेरी
उन पूरानी गलियों में आज भी तेरी याद बसी कैसे है

अब तक,
अब तक याद करता है नासमझ दिल ये मेरा बस यही
तेरा वो बरसों पुराना मिलने का वादा,
किया था जो तूने, मोहल्ले के चौराहे पे कभी
वो वादा आज भी अधुरा क्यूं है,
 वो चौराहा आज भी सुना क्यूं है

खुदा कसम, सौ गम सह लूँ मैं तेरे वास्ते,
पर तेरे जाने का गम इतना बड़ा क्यूं है, इतना बड़ा क्यूं है



Sunday, January 22

Sweet Sunshine

O sweet sunshine of winter!
Tell us how to live life better.

Ur eternal battle with shadow,
Is this the key to an eventful future?
The future built on fight and survive,
And Not on flight at first sight

Will the heart ever understand the message,
Hidden in the battle of sunshine.

Tharoor in a pseudo intellectual role till 2019

Mr Tharoor is a learned person...represented India in the UN ...lost the race to be its secretary general not because he was less competen...