ख़ुशी में भी दर्द का एहसास क्या होता है
ये मैंने अब जाना है
जल बीच प्यास क्या होती है
ये मैंने अब जाना है
तनहइयां जो मेरे अन्तरंग थी कभी
उन्हें खोने का एहसास क्या होता है
ये मैंने अब जाना है।
कितने जश्न हुए जिनमें मैं भी शरीक था
शारीर साथ था पर मन कहीं दूर था
ढूंढ रहा था उस खुसी को ये
जिससे हर पल ये वंचित हर पल दूर था।
क्या यूँही भटकता रह जायेगा चंचल मन
जिंदगी की तलाश में
या कोई झरना मिल जायेगा
बुझाने मन की प्यास को।
जिंदगी तो अब तक अधूरी ही लगी है
पतझड़ के पेड़ों की तरह
हलकी खोखली दिखी है
पर कोशिश है यही अब तक
बहर दूँ अपने अधूरेपन एहसास को
मन की प्यास को
कुछ कर गुजरने की छह से।
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