कभी सोचता हूँ
समेट दूँ
तुम्हारी दास्ताँ कागचों पे
अपने शब्दों के सहारे
पर बैठता हूँ जब
लिखने तुम्हें
तो रुक जाता हूँ
अब तुम ही बताओ
सत्ताईस सालों की ख़ुशी
मुझसे भला
नज़्मों में बयां हो पायेगी कभी !
समेट दूँ
तुम्हारी दास्ताँ कागचों पे
अपने शब्दों के सहारे
पर बैठता हूँ जब
लिखने तुम्हें
तो रुक जाता हूँ
अब तुम ही बताओ
सत्ताईस सालों की ख़ुशी
मुझसे भला
नज़्मों में बयां हो पायेगी कभी !
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