मत कहो हमसे हम तुम्हारे कुछ भी नहीं
एक बरसों का नाता है प्रेम के बंधन का
रुठते रहो यूँही कोई शिकवा नहीं
पर छोड़ के जाने का ख्याल सपनों से भी जुदा करो |
कहाँ पाओगे हम जैसा आशिक कोई
जो तुम्हारी ठोकर को भी खुदा की इनायत समझता हो
तुम्हारी जुदाई को दोजख मानता हो |
दूर जाओगे तो समझ पाओगे हमारे प्यार को
अभी तुम क्या जानो हमारे निश्छल समर्पण के भाव को ||
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