1.
मैं चुप हरदम हमेशा,
किसे सुनाता अपनी व्यथा,
डर के बादल, शोषण का कुहरा
बचपन मेरा था ऐसे गुजरा ।
अपना था वो पूरा अपना,
है अबतक इस बात का रोना
कहता मुझको अपना खिलौना,
पर खेल-खेल में उजाड़ दिया मेरा बचपन सलोना ।।
2.
बाल-मन मेरा घबराया सहमा सा
दर्द के साये में हरवक्त डूबा सा
शीशों सी चुभती उसके आने की आहटें
और आहटों में कैद तड़प मेरे मन की
उस तड़प का है आजीवन दीदार किया
दर्द में मैंने दर्द से हरदम इकरार किया ।।
सन्दर्भ: ये दो कवितायेँ बाल-शोषण जैसे गंभीर मुद्दे पर कुछ कहना चाहती हैं। अगर यें लोगों को इस समस्या के बारे में थोडा भी सोचने पर मजबूर कर पायीं तो मेरा प्रयास सफल होगा ।
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