मेरे घर के सामने एक हरा-भरा मैदान,
पेड़ जिसमें अनेकों बरगद, शीशम, सागवान,
उनपर आया रहने झुण्ड परिंदों का इसबार
अद्भुत, अनुपम, मनोरम दृश्य पूर्ण सजीव साकार |
उड़ते, चहचहाते, झुण्ड में कलरव करते
और आंगन में कभी गेहूं के दाने चखते
परिंदे देख-देख जिन्हें मैं हर्षित परेशान |
हर्ष, कि कितनी मनभावन दुनिया इनकी,
पेड़ जिसमें अनेकों बरगद, शीशम, सागवान,
उनपर आया रहने झुण्ड परिंदों का इसबार
अद्भुत, अनुपम, मनोरम दृश्य पूर्ण सजीव साकार |
उड़ते, चहचहाते, झुण्ड में कलरव करते
और आंगन में कभी गेहूं के दाने चखते
परिंदे देख-देख जिन्हें मैं हर्षित परेशान |
हर्ष, कि कितनी मनभावन दुनिया इनकी,
परेशान, क्यूंकि नहीं समझता इनकी बोली इंसान
जो देती हरवक्त भाईचारे और उन्मुक्त जीवन का पैगाम
और जो कानों में चुपके से कहती,
कि चाहे कहो उसे 'शशांक' या 'रहमान'
सबसे पहले वो है 'इंसान' ||
'शशांक'
जो देती हरवक्त भाईचारे और उन्मुक्त जीवन का पैगाम
और जो कानों में चुपके से कहती,
कि चाहे कहो उसे 'शशांक' या 'रहमान'
सबसे पहले वो है 'इंसान' ||
'शशांक'
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