Wednesday, September 6


अगर कभी अँधेरी रातों के सैलाब, 
सब्र के बांध परखने आ जायें 
ठहर जाना कुछ देर उनके भी साथ 
क्यूंकि हैं नावाकिफ वो इस बात से 
कि हर रोज फिर से दस्तक देने की 
है उजाले की अटूट फितरत |

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