Sunday, December 15

लोग सच ही कहते हैं, "इश्क की संगत से इश्क हो जाता है ।"
हम बेपर्दा यूं ही नहीं हुए है आज वरना !

पर दोस्त, वो सिर्फ 'मोहब्बत' थी,
जो मैंने बारिश बन तेरी अँखियों से गिरती देखीं थी ।
उस दिन भी छिपाया था, आज भी छिपाते हो ।
पर चलो अब जान ही लो तुम ये बात,
मेरे शक का तुम पे राज,
कई महिनों पहले मिला था एक टुकड़ा कागज का,
तुम्हारे तकिये के पीछे ।
कुछ लिख रखा था उसपे धुंधला सा तुमने,
जैसे नहीं चाहते थे लिखना, पर रोक न सके दिल का कहना ।
हर हर्फ़ उसका था मोहब्बत का आरम्भ,
इश्क का माधुर्य, प्यार का बसंत ।
गिरे हुए थे तुम्हारे बिस्तर पे भी कई रंग,
एक ही तस्वीर उंकेरे ।
उस दिन भी तो तुम खुश थे कितना,
चाय की प्यालियों में मोहब्बत ढूंढकर |
पर दो रात नहीं थे सोये,
उसकी शादी तय होने की बात सुन |

दोस्त, इस 'इश्क' से तो बुत भी आशिक बन जाता ।
मैं फिर क्या कुछ कहने लायक हूँ !

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