एक नज़र की तमन्ना में सदियों बिताये चला हूँ,
मैं बेपरवाह 'इश्क' से मुकद्दर जलाये चला हूँ |
सूखी स्याही उसमें अहसासों की कब से
मैं फिर भी कतरों की आस लगाये चला हूँ |
'शशांक'
मैं बेपरवाह 'इश्क' से मुकद्दर जलाये चला हूँ |
सूखी स्याही उसमें अहसासों की कब से
मैं फिर भी कतरों की आस लगाये चला हूँ |
'शशांक'
No comments:
Post a Comment