Sunday, September 23

एक नज़र की तमन्ना में सदियों बिताये चला हूँ,
मैं बेपरवाह 'इश्क' से मुकद्दर जलाये चला हूँ |
सूखी स्याही उसमें अहसासों की कब से
मैं फिर भी कतरों की आस लगाये चला हूँ |

'शशांक'

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