Monday, August 27

प्रभु क्यूँ इस जग के किस्से करते मुझे अधीर
बन जोगी बस रमता फिरूं भर नैनों में नीर
'प्रीती' माला मैं जपूँ, इस सा न दूजा तीर्थ
बैकुंठ, कैलाश इस जग में मेरे, जो बनूँ मैं उसका मीत ||

'शशांक'

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