प्रभु क्यूँ इस जग के किस्से करते मुझे अधीर
बन जोगी बस रमता फिरूं भर नैनों में नीर
'प्रीती' माला मैं जपूँ, इस सा न दूजा तीर्थ
बैकुंठ, कैलाश इस जग में मेरे, जो बनूँ मैं उसका मीत ||
'शशांक'
बन जोगी बस रमता फिरूं भर नैनों में नीर
'प्रीती' माला मैं जपूँ, इस सा न दूजा तीर्थ
बैकुंठ, कैलाश इस जग में मेरे, जो बनूँ मैं उसका मीत ||
'शशांक'
No comments:
Post a Comment